COVID-19 महामारी के दौरान मोतियाबिंद के मामलों में आई तेजी

कोविड महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में देर से इलाज और जीवनशैली में बदलाव के कारण लोगों में आंखों की समस्याओं की गंभीरता बढ़ गई है। डॉ अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञों ने कहा कि इस महामारी से बुजुर्गों की आबादी विशेष रूप से प्रभावित हुई है। कोविड के डर से अस्पताल नहीं जाने वाले 65 साल से अधिक उम्र के रोगियों में हाल के महीनों में परिपक्व मोतियाबिंद के मामलों में पांच गुणा वृद्धि हो गयी है। उनके अनुसार, आंखों से दिखाई नहीं देने सहित गंभीर जटिलताओं के साथ आंखों के अस्पतालों में आने वाले लोगों की संख्या हाल के दिनों में कई गुना बढ़ गई है।

आंकड़ा पांच गुना बढ़ा
महाराष्ट्र के नवी मुंबई के डॉ अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल की क्षेत्रीय मेडिकल डायरेक्टर डॉ वंदना जैन का कहना है ,“2019 के आखिरी तीन महीनों में जब महामारी ने पूरी तरह से अपना कहर नहीं बरपाया था हमारे पास आने वाले मोतियाबिंद के सभी रोगियों में से सिर्फ 10 प्रतिशत परिपक्व मोतियाबिंद से पीड़ित थे। लेकिन वर्ष 2020 के अतिम तीन महीनों में, यह आंकड़ा पांच गुना बढकर 50 प्रतिशत तक हो गया। इसका कारण यह है कि पिछले एक साल के दौरान, मरीज इस बात को लेकर चिंतित थे कि अस्पताल जाने पर वे कोरोनावायरस के संपर्क में आ जाएंगे।”

फॉलो-अप को नजरअंदाज किया
ऐसे अधिकांश लोग जिन्हें पहले से आंखों की समस्याएं थीं‚ वे महामारी के दौरान डॉक्टरों के साथ फॉलो-अप को नजरअंदाज करते रहे, जिससे उनकी स्थिति खराब हो गयी। जिन्हें हाल में आंखों की समस्याएं हुई उन्होंने भी डॉक्टरों से परामर्श करने के लिए इंतजार किया, जिसके कारण उनकी आंखों की रोशनी खत्म हो गई या अन्य गंभीर परिणाम हुए। डॉ वंदना जैन कहतीं हैं कि अब अस्पताल आने वाले रोगियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन फिर भी कोविड से पहले जितने मरीज अस्पताल आते थे उतने नहीं आ रहे हैं। वायरस का डर हमें कई साल पीछे छोड़ रहा है।

संघर्ष करना पड़ रहा है
डॉ वंदना जैन कहतीं हैं कि महामारी का बहुत बड़ा सामाजिक-आर्थिक प्रभाव भी पड़ा है और कई नेत्र रोगियों को सर्जरी के खर्चों को पूरा करने के लिए आर्थिक रूप से संघर्ष करना पड़ रहा है। हमारे पास आने वाले मोतियाबिंद के कई मरीज़ पैसे बचाने के लिए केवल एक आंख में ऑपरेशन करवा रहे हैं जोकि सही नहीं है। इस समय लोगों को अपनी आंखों की समस्याओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। अगर आप आंखों की प्रॉब्लम को अनदेखा करेंगे तो आंख की छोटी समस्या और अधिक गंभीर हो सकती है।

आंखों की जांच अवश्य कराएं
डॉ वंदना जैन कहतीं हैं कि 50 वर्ष से अधिक उम्र के मधुमेह के रोगियों को साल में कम से कम एक बार आंखों की जांच अवश्य करानी चाहिए, क्योंकि उनमें से 30 प्रतिशत मधुमेह रोगियों में डायबेटिक रेटिनोपैथी सहित डायबेटिक नेत्र रोग होने का खतरा रहता है। आंखों की जांच और इलाज में किसी भी प्रकार की देरी से अंधापन सहित अधिक गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं। ग्लूकोमा के रोगियों के लिए भी यह सही है। यदि उनकी स्थिति अस्थिर है या उनमें आंखों में दर्द या दृष्टि में बदलाव जैसे असामान्य लक्षण विकसित होते हैं, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

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