Makar Sankranti 2022: कब है मकर संक्रांति? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा

मकर संक्रांति हर साल जनवरी की 14 तारीख को मनाई जाती है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।


पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है । कहीं-कहीं इस दिन को ‘खिचड़ी’ के नाम से जाना जाता है। इस पावन दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। इस दिन काले तिल को विशेष रूप से दान किया जाता है।

मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त

मकर संक्रांति : 14 जनवरी 2022

पुण्य काल: 14 जनवरी को दोपहर 02.43 से शाम 05.45 तक

पुण्य काल की कुल अवधि: 03 घंटे 02 मिनट

मकर संक्रांति के दिन महा पुण्यकाल: 14 जनवरी को दोपहर 02.43 से 04:28 तक

कुल अवधि : 01 घंटा 45 मिनट

मकर संक्रांति का महत्व 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन देवता का दिन आरंभ हो जाता है। देवता का दिन 6 माह के लिए प्रारंभ हो जाता है। सूर्य के उत्तरायण होने को देवताओं का दिन कहा जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। इस नदी पवित्र नदियों में स्नान करने और उसके बाद दान करने का महत्व होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है, लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के मिलन का भी त्योहार है। एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। कहते हैं मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाता है।

मकर संक्रांति पर ऐसे करें पूजा

मकर संक्रांति के दिन तड़के उठकर स्नान आदि करना चाहिए। घर में पानी में तिल डाल कर स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव को जल चढ़ाने की परंपरा है। सूर्य देव को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें लाल फूल, चंदन, तिल और गुड़ रख लें। जल के इसी मिश्रण को सूर्य देव को अर्पित करें। भगवान सूर्य को जल अर्पित करते हुए ‘ॐ सूर्याय नम:’ मंत्र का भी जाप करना चाहिए। साथ ही इसके बाद अपनी क्षमता के अनुसार वस्त्र और अन्न आदि दान करना चाहिए। तिल के दान का महत्व खास है। साथ ही चावल, दाल, खिचड़ी का दान भी बहुत शुभ माना गया है। इसके अलावा ब्रहामण को भोजन कराने की भी परंपरा है।

 

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