नवरात्रि के सातवें दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा, पढ़ें ये पौराणिक कथा और मंत्र
नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के कालरात्रि रूप को पूजा जाता है। इस दिन जो भी भक्त साफ़ मन और श्रद्धा भावना से देवी कालरात्रि की उपासना करता है वह मन चाही सिद्धि प्राप्त कर सकता है।
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत ही भयानक है। लेकिन मां का हृदय अत्यंत ही कोमल है। मां अपने भक्तों को सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति दिलाती है। देवी कालरात्रि का पूजन मात्र करने से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। देवी कालरात्रि के ध्यान मात्र से ही मनुष्य को उत्तम पद की प्राप्ति होती है साथ ही इनके भक्त सांसारिक मोह माया से मुक्त हो जाते हैं। देवी कालरात्रि के भक्तों को किसी भी प्रकार का भय नहीं सताता है भूत, प्रेत, पिशाच और राक्षस इनके नाम का स्मरण करने से ही भाग खड़े होते हैं।
मां कालरात्रि का वाहन
मां कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है। जो सभी जीव-जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती है। मां कालरात्रि अपने इस वाहन पर पृथ्वीलोक का विचरण करती हैं। मान्यता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों को काल से बचाती हैं यानी मां के उपासक की अकाल मृत्यु नहीं होती है।
कथा
एक बहुत बड़ा दानव था रक्तबीज। उसने देवों और जनमानस को परेशान कर रखा था। उसकी विशेषता ये थी कि जब उसके खून की बूंद (रक्त) धरती पर गिरती थी तो उससे उसका हूबहू वैसा ही नया रुप बन जाता था। फिर सभी भगवान शिव के पास गए, शिव को पता था कि देवी पार्वती ही उसे खत्म कर सकती हैं। शिव ने देवी से अनुरोध किया। इसके बाद मां ने स्वयं शक्ति संधान किया। मां पार्वती का चेहरा एक दम भयानक डरावना सा दिखने लगा। फिर जब वो एक हाथ से रक्तबीज को मार रहीं थीं तभी दूसरे हाथ में एक मिट्टी के पात्र खप्पर से झेल लेतीं और रक्त को जमीन पर गिरने नहीं देतीं। इस तरह रक्तबीज को मारने वाला माता पार्वती का ये रूप कालरात्रि कहलाया।
मां कालरात्रि को लगाएं ये भोग
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि को गुड़ अतिप्रिय है। मान्यता है कि देवी मां को गुड़ का भोग लगाने से वह प्रसन्न होती हैं।