क्रिकेट खेलना मेरे लिए आसान काम नहीं था- शाहिद कपूर
क्रिकेट बैकग्राउंड पर बेस्ड शहीद कपूर की फिल्म 'जर्सी' 14 अप्रैल को रिलीज हो रही है। इस फिल्म में शाहिद के साथ मृणाल ठाकुर मुख्य भूमिका में नजर आएंगी।
बॉलीवुड एक्टर शाहिद कपूर (Shahid Kapoor) इन दिनों अपनी अपकमिंग स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म ‘जर्सी’ (Jersey) को लेकर सुर्खियों में हैं। हाल ही में दिल्ली के पंचतारा होटल ली मेरिडियन में फिल्म ‘जर्सी’ के प्रमोशन के दौरान शाहिद कपूर ने मूवी से जुड़ी कई बातें शेयर कीं अर्पणा यादव के साथ।
फिल्म ‘जर्सी’ ‘ के रीमेक का ऑफर आपको अब मिला?
तेलुगू फिल्म ‘जर्सी’ के रीमेक का ऑफर ‘कबीर सिंह’ की रिलीज के दो हफ्ते पहले आया था और उस दौरान मैं और भी स्क्रिप्ट्स पढ़ और सुन रहा था। फिल्म ‘जर्सी’ की स्क्रिप्ट ने इस कदर दिल को छू लिया कि मैं बेहद भावुक हो गया था और रोने लगे थे और ऐसे में मीरा और मैनेजर दोनों ही मेरी हालात देखकर हैरान रह गए थे।
फिल्म ‘जर्सी’ को साइन करने की कोई खास वजह?
मैंने ‘जर्सी’ को इसीलिए चुना क्योंकि मैं खुद को इस फिल्म से बेहद कनेक्टेड महसूस किया था।
तेलुगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ की रीमेक ‘कबीर सिंह’ के फौरन बाद एक और तेलुगू फिल्म की रीमेक ‘जर्सी’ में काम करने पर क्या फील किया आपने?
दोनों फिल्मों में काम करने के बाद इस बात का एहसास हुआ है कि रीमेक बनाना बेहद मुश्किल काम है। कुछ मामलों में तो ओरिजनल कैरेक्टर से अधिक कठिन काम होता है रीमेक में वही रोल निभाना क्योंकि आपका निभाया किरदार फ्रेश लगना चाहिए ना कि मूल किरदार की नकल।
इस तेलुगु फिल्म का हिंदी डब वर्जन यूट्यूब पर पहले से ही अपलोड है? डर नहीं लगा फिल्म साइन करते समय?
ये तेलुगु फिल्म की हिंदी फिक्शन मूवी है। ऐसे में ये ओरिजनल से काफी हटकर है। मैंने यूट्यूब वाली वो फिल्म देखी है। वो कुछ अलग ही एडिट है। उसमें डबिंग भी कुछ अलग ही है। जब मैंने ये बात डायरेक्टर से जाकर पूछी थी तो वो बहुत अपसेट हो गए थे। उन्होंने कहा था- नहीं नहीं नहीं मैंने वो फिल्म देखी, पता नहीं क्या कर दिया उन्होंने उस फिल्म के साथ। उन्होंने मेरी फिल्म को कोई और ही फिल्म बना डाला। मेरी टीम में भी एक दो लोग वो फिल्म देख चुके हैं। तो सबसे मैंने ये सवाल पूछा था कि यार क्या लगता है? फिर जब उन्होंने भी तेलुगु ओरिजनल फिल्म देखी, और फिर जब हमारी फिल्म बनी तो सबने हंस कर ही बोला कि उन्होंने तो कहानी को कुछ अलग ही बना दिया है।
ओरिजनल और रीमेक में क्या होता है फर्क?
जब हमने कबीर सिंह बनाई थी तब हमने कैरेक्टर को भी वो पंजाबी एटीट्यूड दिया था। डीयू की एक अलग वाइब है, वो क्रिएट की। फिर बॉम्बे का एटमॉस्फेयर लाए। इस फिल्म के अंदर हम और हार्ड कोर पंजाब लाएंगे। फिल्म में चंडीगढ़ के सीन हैं, प्रॉपर पंजाबी बोली गई है। ऐसा कहीं भी नहीं है कि हमने सिर्फ हिंदी में ही इसे जारी रखा है। लेकिन आप समझ पाएंगे सरल भाषा में है फिल्म।
फिल्म ‘जर्सी’ ओरिजनल से कितनी अलग है?
फिल्म ‘जर्सी’ ओरिजनल फिल्म से बहुत अलग है। लड़की इसमें तेलुगु है, विद्या का कैरेक्टर। हम कॉलेज में मिलते हैं और प्यार हो जाता है। फिर शादी के बाद लाइफ कितनी बदल जाती है। तो मुझे लगता है कि अगर आप अच्छी फिल्म बनाएंगे और कॉपी पेस्ट नहीं करेंगे तो वो फ्रेश नजरिए के साथ बनेगी और ऑडियंस उसे पसंद करेगी। ऐसा भी है कि ऑडियंस बहुत अलग है। जो लोग डब्ड फिल्में यूट्यूब पर देखते हैं वो सिनेमाघरों में कम आते हैं। इस पर रीसर्च की गई है तो अलग अलग तरह के लोग अलग अलग चीजें कंज्यूम करते हैं। जब कबीर सिंह भी हमने की थी तो रिस्पॉन्स अलग अलग था, किसी को ओरिजनल फिल्म अच्छी लगी थी, तो वो क्रिटिकली देखना चाहते थे कि अब हम इनकी बैंड बजाएंगे। तो कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने सुना पिक्चर के बारे में कि भई ऐसी फिल्म है तो देखने जाना है। तो कुछ ऐसे थे जिन्होंने सुना ही नहीं था तो उन्हें लगा नई फिल्म है देखनी चाहिए। तो ये सब मैटर नहीं करता फिल्म अच्छी होनी चाहिए।
इस फिल्म के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी आपको?
बहुत मेहनत करनी पड़ी। चार महीने की ट्रेनिंग की। हमने बॉम्बे में शुरुआत की और हार्ड पिच पर खेलना शुरू किया। थ्रोडाउन के साथ शुरुआत की। मैंने चार महीने तक 4-5 घंटे क्रिकेट खेला और फिर सेट पर भी मेहनत करता था।
सुनने में आया है कि शूटिंग के दौरान आपको काफी चोट भी आई है?
जी हां, क्रिकेट खेलने की काफी प्रैक्टिस की और इस दौरान कई गंभीर चोटें भी आई। लेकिन इन सब के बावजूद भी हम लोगों ने शूटिंग के दौरान काफी मस्ती भी की। फिल्म के हर शॉट में असली सीजन बॉल का इस्तेमाल किया गया है और जिन सीन्स में चौके और छक्के लगते हुए दिखाए गये हैं, वो असल में मारे गये चौके-छक्के हैं।
क्रिकेट मैच से जुड़े सीन्स कहां शूट हुए?
क्रिकेट मैच से जुड़े फिल्म के सीन्स को चंडीगढ़ के मोहाली क्रिकेट स्टेडियम में शूट किया गया है, जिसे देश का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम माना जाता है।
क्या मूवी में कुछ स्पेशल इफेक्ट यूज किया गया है?
फिल्म में एक भी स्पेशल इफेक्ट यूज नहीं किया गया है। फिल्म को वास्तविकता के करीब रखने के लिए हमने राज्य स्तर के खिलाड़ियों के साथ पिचों पर क्रिकेट खेला है।
जिस दिन ‘जर्सी’ रिलीज़ हो रही है उसी दिन ‘बीस्ट’ और ‘केजीएफ 2’ सिनेमाघरों में पहुंचेगी। इस बारे में आप क्या कहेंगे?
बस ये इतनी सी बात है कि हम फिल्म को रिलीज कर रहे हैं, इसका मतलब ये बिलकुल सही समय है। वरना हम नहीं करते। फिल्म को रिलीज करने का ये सही समय है। मुझे लगता है कि अगर आप दोनों को एक साथ रखते हैं, तो ये दोनों ही एक दूसरे से काफी अलग हैं। मैं ‘केजीएफ 2’ बधाई देता हूं। मैं विजय का बहुत बड़ा फैन हूं और उनकी मूवीज को पसंद करता हूं। वो एक बेहतरीन डांसर हैं और मैं भी डांस को पसंद करता हूं। मुझे लगता है कि ‘बीस्ट’ एक अच्छी फिल्म होगी लेकिन इस समय मार्किट थोड़ी अलग है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि ज्यादा फर्क पड़ेगा।’ शहीद कपूर ने अपने इस इंटरव्यू में ‘केजीएफ 2’ के लिए शुभकामनाएं दी हैं।
क्या रियल लाइफ में क्रिकेट खेलना पसंद हैं?
मुझे असल जिंदगी में स्कूल के दौरान क्रिकेट खेलना बेहद पसंद था। 25 साल बाद एक बार फिर से हाथ में बैट और बॉल उठाना और फिल्म के लिए क्रिकेट खेलना मेरे लिए आसान काम नहीं था।
अपने पिता (पंकज कपूर) के साथ काम करके कैसा लगा?
फिल्म ‘मौसम’ में मैंने पापा के साथ काम किया था और अब ‘जर्सी’ के जरिए एक बार फिर से उनके साथ काम किया है। इस फिल्म मेरे पिता यानि पंकज कपूर, जो इस फिल्म में कोच की भूमिका निभा रहे हैं। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा। मुझे आज भी पापा के साथ काम करने में बेहद डर लगता है और मैं नर्वस हो जाता हूं , मगर उनके साथ काम करने का अपना ही मजा भी है। अपने पिता के साथ एक ही फ्रेम में खड़े होकर एक्टिंग करना उन्हें कई तरह के सबक सिखाता है।
क्या आप भी अपने पिता पंकज कपूर की तरह लिखना शुरू करेंगे?
मुझे नहीं लगता कि मेरे में लिखने की क्षमता है। पापा यानी पंकज कपूर एक सपने की तरह लिखते हैं और मुझको उनके बहुत सारे काम पढ़ने का सम्मान मिला है। मुझे नहीं लगता कि मेरी में वह प्रतिभा है।
क्या आप अभी निर्देशन में कदम रखेंगे?
मैं अभी एक्टिंग छोड़ने को तैयार नहीं हूं। डायरेक्टिंग एक फुल टाइम जॉब है और इसे उस बदलाव की जरूरत है। मेरे दिमाग में एक कहानी भी नहीं है। राइटिंग और डायरेक्टिंग दोनों ऐसी चीजें हैं जिनके लिए आपको पूरी तरह से वहां रहने की जरूरत है जो अभी मेरे दिमाग में नहीं है।
बड़े बजट की फिल्मों के बारे में आपका क्या कहना हैं?
देखिए, कबीर सिंह के बाद सभी कह रहे थे कि मुझे 150 करोड़ की फिल्म करनी चाहिए। लोग मुझे ज्यादा पैसा देना चाहते हैं। मैंने कहा हां जरूर पैसा मिलेगा, लेकिन फिल्म का क्या। एक बड़ी फिल्म और अच्छी फिल्म बनाने में अंतर है। मुझे नहीं लगता कि एक बड़े बजट की फिल्म दर्शकों को थिएटर तक ले आएगी। अगर आप चाहते हैं कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चले तो फिल्म को दर्शकों से कनेक्ट होना चाहिए। मैं फिल्मों को लेकर अपने दिल को फॉलो कर रहा हूं, फिल्म के साइज को नहीं देख रहा। मेरे लिए फिल्म का दिल ही फिल्म का साइज है। मैं बड़े बजट की फिल्मों को करने से डरता हूं क्योंकि वहां चीजें आपके हाथ से चली जाती हैं। मैं ये नहीं मानता कि अगर आप बहुत पैसा खर्च करेंगे तो ज्यादा से ज्यादा ऑडियंस वहां आएगी।